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वृत्तियाँ क्या है?


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योगचित्तानिरोधः


योग सूत्र के पहले श्लोक में महर्षि पतंजलि ने चित्त एवं वृत्ति का वर्णन किया है। वृत्ति के विषय को संक्षिप्त में जानना महत्त्वपूर्ण है। हमारे देह में सेकड़ो नर्वस है। हम यह सोचते है की हमारे नेत्र हमे चित्र दिखाते है। ये सही नई है। अगर आप विचार करे तो एक नेत्रहिन व्यक्ति अपने नेत्र होने पर भी चित्रण नहीं देख सकता।


इसका एक सरल उत्तर है। हमारी प्रत्येक इन्द्रिया हमारे मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम से जुडी हुई है। इन्द्रिया और मनस केवल हमारे यन्त्र है। जो भी जानकारी हम इन्द्रियों से ग्रहण करते है वो हमारी बुद्धि अहंकार मनस एवं इन्द्रिया सन्देश के रूप में सभी अंगो तक पोहोचाती है। इस प्रक्रिया को चित्त कहा जाता है।


यह सन्देश जो हमारे चित्त से निकलते है वो हमारे विचार बन कर उभरते है। इन विचारो को आहार भी कहा जाता है। जिस तरह से हम भोजन का आहार करते है उसी प्रकार हम अपने विचारो का भी आहार करते है। कई बार जब हम कोई मूवी देखते है तो कुछ प्रभावशाली चित्रों से हमारे मन-मस्तिष्क से वृत्तियाँ उत्पन्न होती है। वह चित्र हमारी इन्द्रिया ग्रहण करती है जो आगे जेक हमारे मन से होकर अहंकार एवं आत्मा तक पोहोचति है।


ये ऐसा ही जैसे हम एक पत्थर को किसी तालाब में फेकते है और पानी में जाने के पश्चात् उस पानी से लेहेर उत्पन्न होती है। तालाब जितना साफ़ रहता है उतना ही हम तालाब के निचली धरती को देख सकते है। किन्तु जितना तालाब का पानी अशुद्ध रहेगा हम उतनी ही कठिनाई से हम तालाब के नीचे की धरती को देख पाएंगे। अर्थात जितनी कम वृत्तियाँ हमारे मन से उत्पन्न होंगी उतना ही हम अपनी आत्मा का आभास कर पाएंगे। हमारा मन सर्वदा बहार के सुखो की खोज में भटकता है इसलिए अधिक मात्रा में वो कार्य करते है जिनसे वृत्तियाँ उत्पन्न होती है।


हमरा चित्त निरंतर आत्मा की खोज में हमे प्रोत्साहित करता है किन्तु हमारी वृत्तियाँ हमे पीछे धकेलती है। इसका समाधान महर्षि पतंजलि जी ने योग के रूप में बताया है। हमरे भीतर वृत्तियाँ परेशानी, आशा, असुरक्षा एवं ज़रुरत से ज़ादा सोचने के रूप में आती है। योग हमरी इन वृत्तीय का नाश कर हमारे मन को शुद्ध करती है।


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